गज़ल - ०१

समय की नोक पर लमहा मुझे इन्स़ाफ़ देता है
मगर सुनता नहीं जल्लाद और मैं सुन नहीं सकती

इबादत से मुहब्बत यूँ ह़ज़फ़ की तर्जुमानोंने
मुहब्बत भी नहीं बनती इबादत भी नहीं बनती

निक़ाबों में सलामत आप जो ता-ज़ीस्त रखते हो
सुना है वो नक़ावत शक्ल-ओ-सूरतपर नहीं मिलती


- मुक्ता 'असरार' 
 
© मुक्ता असनीकर



शब्दार्थ

नोक = टोक, अग्र
इन्स़ाफ़ = न्याय, निवाडा 
जल्लाद = गुन्हेगाराची मान उडवणारा / फाशी देणारा 
ह़ज़फ़ = काढून टाकणे, वगळणे, दूर करणे
तर्जुमान = मध्यस्थ, पंडित, तज्ञ, अर्थ समजावून सांगणारे
निक़ाब = नक़ाब, बुरखा, तोंड झाकण्याचे वस्त्र
ता-ज़ीस्त = आजन्म, आयुष्यभर 
नक़ावत = शुद्धता, निर्मळता

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