नज़्म ०१

मिलकर भी यूँ हो जाते हैं ना मिलकर भी
जाँ-पर्वर क्यूँ उन के सितम हैं कैसे बताएँ !

नक़्श-ए-असर गहरा हो चाहे ख़ामोशी का
आह में कितना किस के असर है कैसे बताएँ !

सोज़-ए-क़रीन-ए-आतश से वाक़िफ़ हो कर भी 
देखे ना थे जल्वे ऐसे, कैसे बताएँ ! 

उन ही से बातें करते हैं जब करते हैं...
उन्स-ज़दा क्यूँ हद करते हैं कैसे बताएँ !

जिस्म-ओ-रूह की अज़्मत का मसला है जारी
क़िस्मत सब ने की है, या-रब! कैसे बताएँ !
 
- मुक्ता 'असरार'
 
© मुक्ता असनीकर


शब्दार्थ:

यूँ हो जाना = मरून जाणे
जाँ-पर्वर = जिवाचं रक्षण करणारा
नक़्श = चित्र, कोरलेली नक्षी, भरतकाम
नक़्श गहरा होना = एखादी गोष्ट काळजात खोल रुतणे
आह = उसासा, निश्वास 
सोज़-ए-क़रीन-ए-आतश = विस्तवाच्या फार जवळ गेल्याने पोळणे
जल्वा = नूर, तेज, झळाळी, प्रिय व्यक्तीची झलक
उन्स-ज़दा = इश्काने घायाळ झालेला
अज़्मत = श्रेष्ठत्व, थोरवी, महत्त्व
क़िस्मत = विभाजन, तुकडे करणे
दिलकश = चित्ताकर्षक, मनोहर 
जिद्दत-आगीं = नवनव्या कल्पना, शैलींनी युक्त; सृजनशील 
सौदाई = विक्षिप्त, खुळा, आपल्याच धु़ंदीत असलेला
बेज़ारी = उदासीनता, नाराजी, रस नसणे
दुनियाई = सर्वसामान्य, प्रचलित, व्यवहारी

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