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Showing posts from May, 2025

' কালারে কইরো গো মানা ' - बंगाली गीताचा मराठी अनुवाद

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 श्री. अम्बरीश भट्टाचार्य (অম্বরীশ ভট্টাচার্য: ऑम्बोरीश भोट्टाचार्जो) द्वारा दिग्दर्शित एका साँग व्हिडिओवर काम करण्याची नुकतीच संधी मिळाली. 'कालारे' नामक बंगाली लोकगीतावर हा व्हिडिओ चित्रित करण्यात आला आहे. श्री. भट्टाचार्य यांनीच या गोड गीतावर नव्या, सुरेख संगीत संयोजनेचा साज चढवला आहे. (सबटायटल्ससाठी) मूळ गीताचा हिंदी व मराठीत अनुवाद करणं हे माझं काम होतं. मराठी अनुवादाला विसाव्या शतकारंभीच्या कृष्ण-गीतांची डूब असावी अशी कल्पना होती डोक्यात. हे पहा मूळ गीत अन् त्याखाली माझा अनुवाद: কালারে     কালারে কইরো গো মানা, সে যেন আমার কুঞ্জে আসেনা ।। সে যে কার কুঞ্জেতে পোহায় নিশি, কার কুঞ্জেতে পোহায় নিশি,   আমায় করে প্রবঞ্চনা - সে যেন আমার কুঞ্জে আসেনা । সখি গো . . .   জ্বালাইয়া মোমের বাতি,   জাইগা রইলাম সারারাতি, বাসী হইল ফুলের বিছানা । আমি মরমে জ্বলিয়া মরি, মরমে জ্বলিয়া মরি, নিঠুর শ্যাম কি জানে না - সে যেন আমার কুঞ্জে আসেনা  ।। ১ ।। সখি গো . . . প্রেম করা রাখালের সনে,   সে কি প্রেমের মরম জানে তোমরা কি তার জাইনাও জান না ! সে যে বনে থাকে ধেনু রাখে, বনে ...

' কালারে কইরো গো মানা ' - बंगाली गीत का हिंदी अनुवाद

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हाल ही में श्री. अम्बरीश भट्टाचार्य (অম্বরীশ ভট্টাচার্য: ऑम्बोरीश भोट्टाचार्जो) द्वारा निर्देशित सौंग वीडियो पर काम करने का अवसर मिला।  'कालारे' नामक बंगाली लोकगीत पर यह वीडियो  चित्रित किया गया है। श्री. भट्टाचार्य ने ही इस मधुर गीत को भावविभोर कर देनेवाली नई संगीत संयोजना मे ढाला है। मुझे (सबटायटल्स हेतु) गीत के बोल हिंदी एवं मराठी में अनुवादित करने थे।  हिंदी अनुवाद को मध्यकालीन अवधी, ब्रज पदों की शैलीसे रंगना चाहती थी।  ये रहा मूल गीत एवं नीचे मेरा अनुवाद: কালারে     কালারে কইরো গো মানা, সে যেন আমার কুঞ্জে আসেনা ।। সে যে কার কুঞ্জেতে পোহায় নিশি, কার কুঞ্জেতে পোহায় নিশি,   আমায় করে প্রবঞ্চনা - সে যেন আমার কুঞ্জে আসেনা । সখি গো . . .   জ্বালাইয়া মোমের বাতি,   জাইগা রইলাম সারারাতি, বাসী হইল ফুলের বিছানা । আমি মরমে জ্বলিয়া মরি, মরমে জ্বলিয়া মরি, নিঠুর শ্যাম কি জানে না - সে যেন আমার কুঞ্জে আসেনা  ।। ১ ।। সখি গো . . . প্রেম করা রাখালের সনে,   সে কি প্রেমের মরম জানে তোমরা কি তার জাইনাও জান না ! সে যে বনে থাকে ধেনু রাখে, বনে থাকে ধেনু র...

'युद्धस्य कथा अपि न रम्या' (युद्धच काय, युद्धाच्या कथादेखील रम्य नसतात!)

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* 'अनुभव ' मासिकात (ऑगस्ट २०१७) हा लेख प्रथम प्रकाशित झाला. निराळ्याच शीर्षकाखाली छापला होता तो त्यांनी. असो. *      युद्धस्य कथा अपि न रम्या मुक्ता 'असरार' © मुक्ता असनीकर       'War is the spectacular and bloody projection of our everyday life, is it not?'   - J. Krishnamurti '...The act of defense is already an attack. The calamity of war comes from the strengthening and magnifying of empty distinctions of self and other, strong and weak, attack and defense.'  - Masanobu Fukuoka काही काळापासून दोन्ही महायुद्धांबद्दल सतत काही ना काही वाचते, पाहते. का बरं? - ती विषण्ण वर्णनं वाचून, आत्मक्लेश करून घेऊन 'युद्ध' नामक कायदेसंमत, लोकसंमत गुन्ह्याला बळी पडलेल्या / पडणाऱ्यांसाठी अखिल मानवजातीच्या वतीने आपण प्रायश्चित्त करत आहोत' अशी उदात्त भावना मी उगाच कुरवाळत असेन का? की एकीकडे हिंसेची घृणा करताना मानवातील अंगभूत हिंस्रपणाबद्दलचं, त्याच्या संहारसामर्थ्याबद्दलचं कुतूहल शमवणं मला आवडत असावं? माझ्यातल्या जराश्या चिथावणीने डिवचल्य...