' কালারে কইরো গো মানা ' - बंगाली गीत का हिंदी अनुवाद
हाल ही में श्री. अम्बरीश भट्टाचार्य (অম্বরীশ ভট্টাচার্য: ऑम्बोरीश भोट्टाचार्जो) द्वारा निर्देशित सौंग वीडियो पर काम करने का अवसर मिला। 
'कालारे' नामक बंगाली लोकगीत पर यह वीडियो  चित्रित किया गया है। श्री. भट्टाचार्य ने ही इस मधुर गीत को भावविभोर कर देनेवाली नई संगीत संयोजना मे ढाला है। मुझे (सबटायटल्स हेतु) गीत के बोल हिंदी एवं मराठी में अनुवादित करने थे। 
हिंदी अनुवाद को मध्यकालीन अवधी, ब्रज पदों की शैलीसे रंगना चाहती थी। 
ये रहा मूल गीत एवं नीचे मेरा अनुवाद: 
কালারে 
কালারে কইরো গো মানা, 
সে যেন আমার কুঞ্জে আসেনা ।।
সে যে কার কুঞ্জেতে পোহায় নিশি,
কার কুঞ্জেতে পোহায় নিশি,
আমায় করে প্রবঞ্চনা -
সে যেন আমার কুঞ্জে আসেনা ।
সখি গো . . .
জ্বালাইয়া মোমের বাতি,
জাইগা রইলাম সারারাতি,
বাসী হইল ফুলের বিছানা ।
আমি মরমে জ্বলিয়া মরি,
মরমে জ্বলিয়া মরি,
নিঠুর শ্যাম কি জানে না -
সে যেন আমার কুঞ্জে আসেনা ।। ১ ।।
সখি গো . . .
প্রেম করা রাখালের সনে,
সে কি প্রেমের মরম জানে
তোমরা কি তার জাইনাও জান না !
সে যে বনে থাকে ধেনু রাখে,
বনে থাকে ধেনু রাখে,
নারীর বেদন জানে না -
সে যেন আমার কুঞ্জে আসেনা ।। ২ ।।
সে যেন আমার কুঞ্জে আসেনা ।।
সে যে কার কুঞ্জেতে পোহায় নিশি,
কার কুঞ্জেতে পোহায় নিশি,
আমায় করে প্রবঞ্চনা -
সে যেন আমার কুঞ্জে আসেনা ।
সখি গো . . .
জ্বালাইয়া মোমের বাতি,
জাইগা রইলাম সারারাতি,
বাসী হইল ফুলের বিছানা ।
আমি মরমে জ্বলিয়া মরি,
মরমে জ্বলিয়া মরি,
নিঠুর শ্যাম কি জানে না -
সে যেন আমার কুঞ্জে আসেনা ।। ১ ।।
সখি গো . . .
প্রেম করা রাখালের সনে,
সে কি প্রেমের মরম জানে
তোমরা কি তার জাইনাও জান না !
সে যে বনে থাকে ধেনু রাখে,
বনে থাকে ধেনু রাখে,
নারীর বেদন জানে না -
সে যেন আমার কুঞ্জে আসেনা ।। ২ ।।
श्याम नौं करो मनाही  
सखी श्याम नौं करो मनाही, 
आन न पावे कुन्जन माहीं ।।
जाने कौन कौन उपवन में,
रैन बितावत किस के संग में,
मोसे करत ठगाही
कान्हा आन न पावे कुन्जन माहीं ।
आन न पावे कुन्जन माहीं ।।
जाने कौन कौन उपवन में,
रैन बितावत किस के संग में,
मोसे करत ठगाही
कान्हा आन न पावे कुन्जन माहीं ।
सखी री...
जागी बाती सारी रतिया,
नैनों से उड़ गई निंदरिया,
मुरझाई फूलों की सैया ।
अगन जिया की यों तड़पाए,
मन अकुलाए, मरि-मरि जाए...
सब जाने हरजाही
कान्हा आन न पावे कुन्जन माहीं ।। १।।
ऐ री, हे री सखी...
भए प्रीत में हम दीवाने,
मरम प्रीत का वो क्या जाने !
तुम ने वाके छल ना पछाने ?
गोपाला नित बन में जावत -
बन में जावत, धेनु चरावत ;
नरी-दुख बूझत नाहीं
कान्हा आन न पावे कुन्जन माहीं ।। २।।
 अनुवाद © मुक्ता असनीकर
 
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