फिर छिड़ी बात...

बाज़ार  (१९८२) चित्रपटातील मख़दूम मुहिउद्दीन लिखित फिर छिड़ी रात बात फूलों की  ही गज़ल मलाही आवडते. मूळ गज़लेत आणखी काही शेर आहेत. पण चित्रपटात घेतलेल्या शेरांत...फारशी मजा नाही. एके संध्याकाळी मी उर्दू, हिंदी शब्दकोश काढून बसले. म्हटलं, बघू या जमतं का. गाताना शब्दांची ख़ुमारी चढली पाहिजे. जे शेर मला फारसे भावले नव्हते त्यांची पुनर्रचना केली. चित्रपटात घेतलेले शेर व त्यांत मी केलेले बदल खाली देत आहे:
 
 
चित्रपटातील गज़ल 
 
फिर छिड़ी रात बात फूलों की
रात है या बरात फूलों की |

फूल के हार फूल के गजरे
शाम फूलों की रात फूलों की |

आप का साथ, साथ फूलों का
आप की बात बात फूलों की |

फूल खिलते रहेंगे दुनिया में
रोज़ निकलेगी बात फूलों की |

नज़रें मिलती हैं जाम मिलते हैं
मिल रही है हयात फूलों की |

ये महकती हुई ग़ज़ल 'मख़दूम'
जैसे सहरा में रात फूलों की |
 
 
 
 बदललेले शेर

फिर छिड़ी रात बात फूलों की
रात है या बरात फूलों की |
 
फूलों से हाथ फूलों से गजरे
है बदन या ख़िमार फूलों की | 
 
आप का साथ, साथ फूलों का
हिनाबंदी हो शाज़ फूलों की | 
 
फूल खिलते रहेंगे दुनिया में
गुफ़्त होगी मियान फूलों की |

नज़रें मिलती हैं जाम मिलते हैं
मिल रही है हयात फूलों की | 
 
ये महकती हुई ग़ज़ल मश्मूम
हम्स छिड़की हवा ने फूलों की |
 
 
शब्दार्थ
 
ख़िमार -  ओढ़नी, दुपट्टा 
हिनाबंदी - मेंहदी लगाने की क्रिया
शाज़ - अनोखा, नायाब
गुफ़्त - बातचीत
मश्मूम - सूँघा हुआ
हम्स - नर्म, कोमल आवाज़
 
 
 
 

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