राहें

 राहें
 
मूल मराठी काव्य: पद्मा गोळे(ले) 
 
 
खोयी हुईं राहें
भटकी हुईं राहें
रायज सी राहें

पहलीं थाम लेती है एक हाथ
तो दूसरीं, दूसरा
और कहती हैं तीसरीं खींचकर पाँव,
'बस अब यहीं पड़ जाव' |

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