सफ़ाई
* ईमेल-खाता बदल देने कि वजह से पुरानी पोस्ट फिर से प्रकाशित कर रही हूँ | *
माँ का ख़ून न हुआ होता
यदि मैं उसे भोंक देने पर उतारू न होता।
मैं उसे न भोंकता
यदि वो बराबर मुझे ज़लील न करती।
इतनी ज़िल्लत न करती वो
यदि मैं हर बार पलट कर ग़ुस्सा न दिखाता।
मुझे इतना ग़ुस्सा न आता
यदि मैं अच्छी नींद सो पाता।
बेशक अच्छी नींद सोया होता
यदि मेरा हाज़मा ख़राब न हुआ होता।
हाज़मा न बिगड़ता मेरा
यदि तीन रोज़ लगातार माँ घटिया दाल न बनाती।
माँ लगातार दाल न बनाती
यदि वो दाल की बजाय सब्ज़ी बनाती।
सब्ज़ी ज़रूर बनती
यदि घर में पर्याप्त तरकारी होती।
फल-तरकारी हमेशा रहती घर में
यदि माँ तंगी न करती।
दिल तंग न होता उस का
जो वो दिल की सुनती।
दिल की सुन पाती
यदि गाल-गूल न करती।
इतना गाल-गूल न करती
यदि घबड़ाई हुई न होती।
इतनी न घबड़ाती तो शायद माँ
प्यार में होती आज भी।
प्यार में होती अगर
तो माँ का कोई फ़र्ज़ न होता
गिरस्ती से उचटाने में
उसे कोई हर्ज़ न होता।
न मुझे हर्ज़ होता एक प्यारी औरत के चले जाने में - आज भी नहीं है।
- मुक्ता 'असरार'
© मुक्ता असनीकर
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